Wednesday, 26 September 2018

जब बसने का मन मैं न हो होंसला,बे वजह घोसला मत बनाया करो,

जब बसने का मन मैं न हो होंसला,
बे वजह घोसला मत बनाया करो,
और उठा न सको तुम गिरे फूल तो,
इस तरह डालिय मत हिलाया करो!
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वो समंदर नहीं था थे आंसू मेरे,
जिनमे तुम तेरते और नहाते रहे ,
एक हम थे की आखो की इस झील मैं,
बस किनारे पे डुबकी लगाते रहे !
मछलिय सब झुलस जाऐगी झील की,
अपना पूरा बदन मत डुबाया करो!
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वो हमे क्या संभालेंगे इस भीड़ मैं,
जिनपे अपना दुप्पटा संभालता नहीं,
कैसे मन को मैं कह दू की सु कोमल है ये,
फूल को देख केर के मचलता नहीं!
जिनके दीवारों दर है बने मोम के,
उनके घर मैं न दीपक जलाया करो !
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इन पतंगो को देखो यह उडती यहाँ,
जब कटंगी तो जाने गिरेगी कहाँ,
बहती नदियों को खुद भी पता ही नहीं,
अपने प्रियतम से जाने मिलेंगी कहाँ,
जिनके होटों  पे तुम न हँसी रख सको,
उनकी आँखों मैं न आसू  ना लाया करो!
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प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें,
प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा,
प्रेम होता है दीखता नहीं मगर,
प्रेम की ही धुरी पर यह जग है खड़ा,
और प्रेम के इस नगर मं जो अनजान हो,
उसको रस्ते गलत मत बताया करो!

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